राजस्थान : खंडेलवाल दंपति ने जैविक खेती अपनाकर उन्नत कृषि के जरिए इनोवेश से देशभर में बनाई पहचान

गुरजंट धालीवाल

कोटा। भारत की ग्रामीण महिलाओं को देश की असली वर्किंग वुमन कहा जाता है। आखिर इसमें सच्चाई भी है क्योंकि देश में एक ग्रामीण पुरूष वर्षभर में 1800 घंटे खेती का काम करता है जबकि एक ग्रामीण महिला वर्ष में 3000 घंटे खेती का काम करती है। इसके इतर भी उन्हें अन्य घरेलू काम करना पड़ते हैं। जहां भारत में लगभग 6 करोड़ से अधिक महिलाएं खेती का काम संभालती है। वहीं दुनियाभर में महिलाओं का कृषि कार्यो को करने में 50 प्रतिशत का योगदान रहता है। बावजूद उन्हें कभी खेती करने का श्रेय नहीं दिया जाता है और वे हमेशा हाशिए पर रही हैं। खेती का इतना काम करने के बाद भी उन्हें कभी किसान नहीं माना गया। लेकिन कुछ महिलाओं ने इस भ्रांति को तोडक़र खुद को बतौर किसान साबित किया है। आइए, हम कोटा जिले के गांव पीपल्दा निवासी लक्ष्मी-मनोज खंडेलवाल के बारे में बताते हैं जिन्होंने इस धारणा को गलत साबित कर दिया है। खंडेलवाल दंपति (Kota Khandelwal couple)ने जैविक खेती (organic farming)को अपनाकर उन्नत कृषि के जरिए इसे न केवल लाभकारी बना दिया बल्कि अपने इनोवेश से देशभर में पहचान बना ली है। उन्होंने खेती के जरिये युवाओं को आजीविका की नई राह दिखाई है।

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लक्ष्मी-मनोज खंडेलवाल ने खेती को लाभ का धंधा बनाने के लिए नए तरीकों को अपनाया है जिसके कारण उन्हें कम लागत पर ज्यादा फायदा मिल रहा है। दरअसल, कोटा जिला मुख्यालय से करीब 80 किलोमीटर दूर पीपल्दा के इस खंडेलवाल दंपति ने अब अपने खेत में गेहूं, सरसों, सोयाबीन और सब्जियों के साथ-साथ अपने खेतों में अमरूद के बगीचे को लगाना शुरू कर दिया है। उन्होंने 40 बीघा में अच्छी क्वालिटी वाले वीएनआर-वी, ताइवान ंिपंक, बर्फखां, थाई-7, थाई वन-केजी, ललित-49, हिसार सफेदा वैरायटी के 10 हजार से भी ज्यादा पौधे लगाए हैं।

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कम लागत पर मिल रहा मुनाफा

लक्ष्मी खंडेलवाल को महज डेढ़ वर्ष में ही अमरूदों का उत्पादन मिलने लगा है। इनके बगीचे में लगे वीएनआर-वी किस्म के इन अमरूदों की क्वालिटी अन्य अमरूदों की तुलना में काफी स्वादिष्ट होने के कारण इसका आकार भी काफी बड़ा है। एक अमरूद का औसतन वजह 700 से 800 ग्राम है। इसी वजह से इस अमरूद की दिल्ली, कोटा, जयपुर समेत अन्य शहरों में काफी ज्यादा डिमांड तो है ही वहीं, विदेशों में भी इसका निर्यात सर्वाधिक मात्रा में होता है। औसतन 70 से 100 रुपए प्रति किलो के हिसाब से उच्च क्वालिटी का अमरूद बिक रहा है।

दरअसल खेतों में अमरूद की खेती की शुरूआत लक्ष्मी-मनोज खंडेलवाल ने पहले छह बीघा और बाद में इसे बढ़ाकर कुल 40 बीघा खेतों में अमरूद की खेती को कर लिया है। इनको देखते हुए दूर-दराज के किसान भी अपने खेतों में अमरूद की खेती को करने के लिए उनके बगीचों का भ्रमण कर रहे हैं। रोजाना 10 से 15 किसान उनके खेत पर आते हैं। लक्ष्मी-मनोज खंडेलवाल की मानें तो उनको अमरूद की फसल करने से तीन गुना अधिक लाभ हो रहा है।

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ये है खेती पर खर्च

दरअसल अमरूद की फसल को तैयार करने में एक पेड़ पर करीब 150 रूपये का खर्च आता है। 25 सालों तक एक बीघा खेत में एक से डेढ़ लाख रूपये प्रति वर्ष अमरूद होते हैं। जबकि गेहूं, सरसों, सोयाबीन पैदा करने वाले किसानों को 4 से 5 हजार रूपये प्रति बीघा खर्च हो जाता है।

बागवानी के बागवान खंडेलवाल दंपति

एम.ए. राजनीति विज्ञान तक शिक्षित लक्ष्मी-मनोज खंडेलवाल ने रोजगार एवं आजीविका अर्जन के लिए खेती से नाता जोड़ लिया। उन्होंने बताया कि जिले की जलवायु अनुकूल खाद्यान्न फसलों की पूरी समझ थी लेकिन मन में कुछ अलग करने की इच्छा थी। उन्होंने आजिवीका के लिए सब्जियों व बागवानी करने का भी मन बना लिया। सफेद मूसली की जैविक खेती कर रहे लक्ष्मी-मनोज खंडेलवाल दंपति एक अच्छे बागवान भी हैं।

उन्होंने वर्ष 2010 में छह बीघा असिंचित भूमि खरीदकर व उसमें बोरवेल, सोलर पंप व ड्रिप इरीगेशन के जरिए भी उन्होंने मटर, टिंडा, भिंडी, टमाटर, करेला, बैंगन, धनिया, मिर्च व लहसुुन की खेती से लाखों रुपए मुनाफा कमाया। खेती में अच्छी आमदनी होनेे के कारण लक्ष्मी-मनोज खंडेलवाल ने 2011 में 30 बीघा, 2016 में 8 बीघा, 2017 में 10 बीघा, 2018 में 8 बीघा, 2020 में 8 बीघा यानी कुल 70 बीघा (48 बीघा बारानी व 24 बीघा नहरी)जमीन खरीदी। इसके अलावा वे हर साल 50 बीघा से ज्यादा भूमि ठेके पर लेकर भी काश्त करते हैं। इस प्रकार खंडेलवाल दंपति करीब 120 बीघा में खेती करते हैं। इसमें से 40 बीघा में अमरूद का बाग लगाया है जिसमें सात किस्मों के पौधे लगाए हैं। इसी 40 बीघा में वे इंटरक्रॉपिंग भी करते हैं। अन्य भूमि पर वे सब्जियों के साथ-साथ गेहूं, सरसों इत्यादि की खेती कर रहे हैं। औषधीय खेती के रूप में उन्होंने सफेद मूसली की बुवाई की है।

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बिजनेस की बजाय खेती पर ध्यान केंद्रित

बकौल, मनोज खंडेलवाल कोटा में उनका प्रोपट्री व शेयर बाजार का बिजनेस है। अत्याधुनिक तरीके से यदि खेती की जाए तो यह हमेशा लाभकारी व्यवसाय साबित होगा। उन्होंने ठेके पर लेकर सब्जियां उगाई जिसमें अच्छा खासा मुनाफा हुआ। धीरे-धीरे खेती में मुनाफा लगातार बढ़ता गया और अब सालाना 20 से 25 लाख रुपए की इनकम हो जाती है। इस राशि से हर साल भूमि खरीदते हैं। यही नहीं लक्ष्मी खंडेलवाल का बेटा प्रणव खंडेलवाल व बेटी मानवी खंडेलवाल की भी कृषि व्यवसाय में बेहद रूचि है। उन्होंने अपने बेटे के नाम से आठ बीघा कृषि भूमि खरीदी है। दोनों बच्चे खेती में पूरा सहयोग करते हैं। यही, नहीं लक्ष्मी खंडेलवाल के ससुर घनश्याम लाल खंडेलवाल भी कृषि कार्य में मार्गदर्शक के रूप में अपनी भूमिका निभा रहे हैं। घनश्याम खंडेलवाल की उन्नत व जैविक खेती की विचारधारा को बेटा मनोज खंडेलवाल पूरी तरह से साकार कर रहा है।

‘आत्मा’ पुरस्कार से सम्मानित

अमरूदों की ऑर्गेनिक खेती में प्रगतिशील महिला किसान बनी लक्ष्मी खंडेलवाल ने कृषि की बारीकियों को भी समझा है। उन्होंने पति मनोज खंडेलवाल के साथ सवाईमाधोपुर, जयपुर, लखनऊ, दिल्ली, गाजियाबाद, इलाहाबाद, सोलापुर, विजयवाड़ा, कलकता, रायपुर, नागपुर, जलगांव, नासिक, अहमदाबाद, रतलाम, नीमच शहर का भ्रमण कर वहां पर अमरूद की खेती के बारे में विस्तापूर्वक जानकारी हासिल की। इन शहरों से उन्होंने सैंपल के रूप में अलग-अलग किस्मों के पौधे लगाकर उसके गुणा-व-गुण के आधार पर पौधारोपण किया। मेहनत, लगन व इनोवेशन की वजह से ही राजस्थान सरकार ने लक्ष्मी खंडेलवाल को ‘आत्मा’ के तहत 10 हजार रुपए का नकद पुरस्कार देकर सम्मानित किया है।

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