पुष्कर मेले में दिखी नई ‘मोनालिसा’, नागिन जैसी आंखों से जीता दिल

अजमेर, 1 नवंबर विश्व प्रसिद्ध पुष्कर मेला 2025 इस बार सिर्फ ऊंटों और लोक संस्कृत‍ि के लिए नहीं, बल्कि एक नई ‘मोनालिसा’ के लिए भी चर्चा में है। मेला मैदान में माला बेचने वाली सुमन कालबेल‍िया अपनी नागिन जैसी खूबसूरत आंखों और मुस्कान से सभी का ध्यान आकर्षित कर रही हैं।

लोग उनकी तुलना प्रयागराज कुंभ मेले की वायरल ‘मोनालिसा’ से कर रहे हैं। ठीक उसी तरह जैसे वहां एक साधारण विक्रेता रातोंरात सोशल मीडिया स्टार बन गई थीं, वैसा ही जादू अब पुष्कर की सुमन दिखा रही हैं।

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माला बेचने वाली सुमन

🌸 सुमन की कहानी – परंपरा से पहचान तक

राजस्थान के कालबेलिया समुदाय से आने वाली सुमन बताती हैं कि वह पेशे से एक लोक नृत्य कलाकार (Folk Dancer) हैं और जैसलमेर व अन्य जिलों में कार्यक्रम करती रही हैं।

सुमन का कहना है –

“अगर मेरी आंखों और नृत्य से राजस्थान की लोक संस्कृति को नई पहचान मिलती है, तो यही मेरी सबसे बड़ी सफलता होगी।”

उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें अभी तक बड़ा मंच या फिल्मी मौका नहीं मिला, लेकिन अगर कोई अवसर मिलता है तो वह जरूर कोशिश करेंगी।

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माला बेचने वाली सुमन

💫 सोशल मीडिया पर छाईं सुमन

सुमन का वीडियो पुष्कर मेले से सोशल मीडिया पर वायरल हो चुका है। लोग उनके वीडियो पर कमेंट कर रहे हैं –

“ये तो पुष्कर की मोनालिसा है!”, “इनकी आंखों में राजस्थान की चमक है।” लोग सुमन के पारंपरिक परिधान, सौम्यता और आत्मविश्वास की भी तारीफ कर रहे हैं। वह मेले में घूम-घूमकर माला बेचती हैं और आगंतुकों से हंसकर बात करती हैं। उनकी सहजता और मुस्कान ने उन्हें लोकप्रियता का नया चेहरा बना दिया है।

सोशल मीडिया पर होने लगी सुमन की चर्चा

प्रयागराज के कुंभ मेले में माला बेचने वाली मोनालिसा भी ऐसे ही चर्चा में आई और बॉलीवुड तक में एंट्री उसने अब कर ली है। दुनियांभर में उसको चाहने वाले है। ठीक उसी तरह से पुष्कर मेले में माला बेचने वाली सुमन भी इसी तरह से चर्चा में आ गई है। सुमन को लेकर सोशल मीडिया पर चर्चा जोरों पर है। सुमन पर कई तरह के कमेंट सोशल मीडिया पर चल रहे है। यूजर इसको मोनालिसा कह रहे है।

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माला बेचने वाली सुमन

🎭 लोक कला का गौरव

राजस्थान की कालबेलिया नृत्य परंपरा को यूनेस्को ने भी अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर (Intangible Cultural Heritage) के रूप में मान्यता दी है।
सुमन जैसे कलाकार इस विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं।

स्थानीय कलाकारों का कहना है कि अगर ऐसे लोक कलाकारों को मंच और पहचान मिले, तो राजस्थान की संस्कृति को वैश्विक स्तर पर और अधिक प्रसिद्धि मिल सकती है।

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