⚖️ राजस्थान में पंचायतीराज और शहरी निकाय चुनाव में दो संतान की बाध्यता हो सकती है खत्म

🗓️ जयपुर, 31 अक्टूबर।

राजस्थान में पंचायतीराज और शहरी निकाय चुनाव में लागू दो संतान की बाध्यता को हटाने पर सरकार गंभीरता से विचार कर रही है। सूत्रों के अनुसार, इस नियम को लेकर सरकार के उच्च स्तर पर कानूनी, प्रशासनिक और राजनीतिक समीक्षा की जा रही है, और आगामी समय में इस पर बड़ा फैसला संभव है।

🏛️ भजनलाल सरकार का संकेत – “वक्त के साथ नियमों में बदलाव जरूरी”

वर्तमान में दो से अधिक संतान वाले व्यक्ति पंच, सरपंच, पार्षद, मेयर या जिला प्रमुख का चुनाव नहीं लड़ सकते। सरकार अब इस प्रतिबंध को शिथिल करने की दिशा में संभावनाएं तलाश रही है।

सूत्रों के मुताबिक, कई जनप्रतिनिधियों, संगठनों और राजनीतिक कार्यकर्ताओं ने पंचायतीराज एवं स्वायत्त शासन विभाग को ज्ञापन देकर तीसरी संतान की बाध्यता खत्म करने की मांग की है।

इस पर दोनों विभागों से अनौपचारिक रिपोर्ट मंगवाई जा चुकी है।

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यूडीएच मंत्री झाबर सिंह खर्रा

🗣️ यूडीएच मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने दिए संकेत

शहरी विकास एवं स्वायत्त शासन मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने कहा –

“जब सरकारी कर्मचारियों पर तीन संतान का प्रतिबंध हटा दिया गया, तो जनप्रतिनिधियों के साथ भेदभाव क्यों? उन्हें भी समान छूट मिलनी चाहिए। जनसंख्या नियंत्रण महत्वपूर्ण विषय है, लेकिन नियम सबके लिए समान होने चाहिए।”

उन्होंने यह भी कहा कि इस विषय पर मंत्रिपरिषद में विचार-विमर्श कर
चुनाव से पहले निर्णय लिया जाएगा कि छूट दी जाए या नहीं।

🧩 राजनीतिक दृष्टि से बड़ा फैसला माना जा रहा

राजस्थान के शहरी इलाकों में जहां भाजपा का मजबूत जनाधार है, वहीं ग्रामीण इलाकों में कांग्रेस का प्रभाव माना जाता है। भजनलाल शर्मा सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में जनसमर्थन बढ़ाने और काबिल परंतु अयोग्य घोषित कार्यकर्ताओं को मौका देने की रणनीति बना रही है।

कई ऐसे नेता हैं जो अपने क्षेत्र में प्रभावशाली हैं, परंतु दो से अधिक संतान होने के कारण चुनाव नहीं लड़ पाते। सरकार को महसूस हो रहा है कि अब यह नियम “वक्त से पीछे” हो गया है, इसलिए “राजनीतिक और सामाजिक वास्तविकता” के अनुसार इसमें बदलाव आवश्यक है।

⚖️ कानूनी पृष्ठभूमि – भैरोंसिंह शेखावत सरकार में लागू हुआ था कानून

27 नवम्बर 1995 को राज्य सरकार ने राजस्थान पंचायतीराज अधिनियम और नगरपालिका अधिनियम में संशोधन कर
यह प्रावधान जोड़ा था कि-

“27 नवम्बर 1995 के बाद यदि किसी व्यक्ति की तीसरी संतान होती है, तो वह पंचायत या शहरी निकाय के किसी भी चुनाव के लिए अयोग्य होगा।”

इसमें पंच, सरपंच, प्रधान, जिला प्रमुख, पार्षद, सभापति और मेयर जैसे सभी पद शामिल हैं। यदि कोई उम्मीदवार गलत जानकारी देकर चुनाव लड़ लेता है, और बाद में सत्य उजागर होता है, तो उसका पद रद्द कर दिया जाता है और कानूनी कार्रवाई भी होती है।

🧮 कानून के तहत विशेष प्रावधान

स्थितिपात्रता
27 नवम्बर 1995 से पहले दो से अधिक संतान✅ चुनाव लड़ने योग्य
27 नवम्बर 1995 के बाद तीसरी संतान❌ चुनाव लड़ने अयोग्य
जुड़वां बच्चे (दूसरे जन्म में)✅ एक इकाई माने जाएंगे
तीसरा बच्चा गोद दिया गया❌ अयोग्य माना जाएगा (गोद लिया बच्चा भी गिना जाएगा)

⚠️ पिछले तीन दशकों में विवाद और मुकदमे

राजस्थान में पिछले तीस वर्षों में तीसरी संतान से जुड़े कई कानूनी विवाद सामने आए हैं। कई सरपंचों और पंचायत प्रतिनिधियों की सदस्यता रद्द हुई, जबकि कई मामलों में विरोधियों की शिकायतों पर पद और प्रधानी खतरे में पड़ी।

अब सरकार का मानना है कि समय के साथ सामाजिक परिदृश्य बदल गया है, इसलिए नए सिरे से समीक्षा कर संतुलित नीति अपनाना आवश्यक है।

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