जयपुर, 26 अक्टूबर 2025।
जयपुर के संतोकबा दुर्लभजी हॉस्पिटल में इलाज के दौरान एक मरीज की मौत के बाद अस्पताल प्रशासन द्वारा बिल की बकाया राशि के नाम पर शव रोकने का मामला सामने आया। इस अमानवीय व्यवहार से परिजनों में आक्रोश फैल गया। मामला बढ़ने पर कृषि मंत्री डॉ. किरोड़ीलाल मीणा ने हस्तक्षेप किया और अस्पताल पहुंचकर कड़ा रुख अपनाया। उनके हस्तक्षेप के बाद अस्पताल ने न केवल शव परिजनों को सौंपा बल्कि ₹5.75 लाख की राशि भी लौटाई।
🔹 क्या है पूरा मामला
राजस्थान के दौसा जिले के बालाजी थाना क्षेत्र निवासी विक्रम कुमार मीणा को 13 अक्टूबर 2025 को जयपुर स्थित संतोकबा दुर्लभजी हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था।
उनका उपचार आयुष्मान भारत योजना और मुख्यमंत्री आयुष्मान स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत होना था।
लेकिन, विक्रम मीणा के योजना के पात्र होने के बावजूद, अस्पताल प्रशासन ने परिजनों से इलाज के नाम पर ₹5.75 लाख वसूल लिए। इलाज के दौरान ही विक्रम की मृत्यु हो गई। इसके बाद भी अस्पताल ने शव देने से इनकार कर दिया और ₹1.89 लाख की बकाया राशि की मांग करते हुए पार्थिव देह को रोके रखा।
🔹 मंत्री डॉ. मीणा पहुंचे अस्पताल, जताई नाराजगी
मृतक के परिजनों ने इसकी शिकायत कृषि मंत्री डॉ. किरोड़ीलाल मीणा से की। पहले उन्होंने अस्पताल प्रशासन से फोन पर बात करने की कोशिश की, लेकिन जब अस्पताल प्रबंधन ने फोन नहीं उठाया, तो मंत्री सीधे हॉस्पिटल पहुंचे।
डॉ. मीणा ने अस्पताल के अधिकारियों से बातचीत की और इस पूरे मामले पर कड़ी नाराजगी व्यक्त की। उन्होंने कहा –
“यह अस्पताल उस जमीन पर बना है जो सरकार ने मात्र एक रुपये में दी थी ताकि आमजन को सस्ती चिकित्सा सुविधा मिल सके। लेकिन यहां मानवता के नाम पर शर्मनाक व्यवहार किया जा रहा है।”
मंत्री ने बताया कि विक्रम के परिजनों ने पहले ही ₹6.39 लाख का भुगतान किया था, फिर भी अस्पताल ने अवैध रूप से शव रोके रखा। उन्होंने इस प्रकरण की रिपोर्ट मुख्य सचिव को कार्रवाई हेतु भेजने की बात कही।
🔹 मंत्री के हस्तक्षेप के बाद लौटी रकम और मिला शव

कृषि मंत्री के हस्तक्षेप के बाद अस्पताल प्रबंधन ने मृतक का शव परिजनों को सौंप दिया और ₹5.75 लाख की राशि चेक के माध्यम से वापस कर दी।
मौके पर इसी प्रकार के 4–5 अन्य प्रकरणों की भी शिकायतें आईं, जिनके त्वरित निस्तारण के निर्देश मंत्री मीणा ने दिए।
🔹 निजी अस्पतालों से मंत्री की अपील
डॉ. मीणा ने प्रदेश के सभी निजी अस्पतालों से अपील की कि वे राज्य और केंद्र सरकार की स्वास्थ्य योजनाओं को पारदर्शिता और ईमानदारी से लागू करें ताकि आमजन को उनके अधिकार का लाभ मिल सके।
उन्होंने कहा कि “सरकार जनकल्याण के लिए योजनाएं बना रही है, लेकिन यदि अस्पताल व्यावसायिक दृष्टिकोण अपनाएंगे तो इन योजनाओं का उद्देश्य ही विफल हो जाएगा।”
संतोकबा दुर्लभजी हॉस्पिटल प्रशासन ने क्या कहा
संतोकबा दुर्लभजी हॉस्पिटल ने कहा कि मरीज को दूसरे अस्पताल से रेफर कर लाया गया था और जनाधार कार्ड एक्टिव नहीं होने के कारण वे सरकारी योजना के तहत इलाज नहीं कर सकते। चीफ एडमिनिस्ट्रेटर जॉर्ज थॉमस ने बताया, “परिजनों ने कैश में इलाज की लिखित सहमति दी थी। हमने मरीज को बचाने के लिए सर्वोत्तम उपचार दिया, लेकिन दुर्भाग्य से मौत हो गई। हमने 80 हजार रुपये का डिस्काउंट भी दिया।” विवाद सुलझने के बाद अस्पताल ने जमा 5.75 लाख रुपये मृतक की पत्नी के नाम तीन अलग-अलग चेकों से लौटा दिए। थॉमस ने जोर देकर कहा, “हम सेवा के क्षेत्र में हैं, लेकिन नियमों का पालन जरुरी है।”