जया एकादशी पर भगवान श्रीहरि विष्णु का व्रत उपवास रखकर होगी पूजा-अर्चना, जाने व्रत की महिमा, पूजा विधि 

Jaya Ekadashi 2024 : जया एकादशी : 20 फरवरी 2024, मंगलवार

– ज्योर्तिवद् विमल जैन
सनातन धर्म में व्रत त्यौहार की परम्परा काफी पुरानी है। हिन्दू धर्मग्रन्थों में हर माह के विशिष्ट तिथि की विशेष महत्ता है। हिन्दू धर्मग्रन्थों में हर माह की एकादशी तिथि की विशेष महिमा है। प्रत्येक माह की एकादशी तिथि अलग-अलग नामों से जानी जाती है।

Jaya Ekadashi 2024 : जया एकादशी 

प्रख्यात ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि माघ मास के शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि जया एकादशी के नाम से जानी जाती है। इस बार यह पर्व 20 फरवरी, मंगलवार को हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा।

माघ शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि 19 फरवरी 2024 , सोमवार को प्रात: 8 बजकर 51 मिनट पर लगेगी जो कि 20 फरवरी, मंगलवार को प्रात: 9 बजकर 56 मिनट तक रहेगी। आद्रा नक्षत्र 19 फरवरी, सोमवार को प्रात: 10 बजकर 33 मिनट से 20 फरवरी, मंगलवार को दिन में 12 बजकर 13 मिनट तक रहेगा, तत्पश्चात् पुनर्वसु नक्षत्र लग जायेगा। उदया तिथि में 20 फरवरी, मंगलवार को एकादशी तिथि मिलने से यह व्रत वैष्णवजन एवं स्मार्तजन रख सकेंगे।

जया एकादशी की खास महिमा है, जैसा कि तिथि के नाम से विदित है कि तिथि विशेष के दिन सम्पूर्ण दिन व्रत उपवास रखने से समस्त कार्यों में जय होती है। जया एकादशी का व्रत करने और भगवान विष्णु की विधि विधान से पूजा करने पर व्यक्ति को भूत, प्रेत, पिशाच आदि की योनि से मुक्ति मिलती है। अनजाने में किए गए पापों से मुक्ति तथा कष्टों से भी छुटकारा मिलता है। भगवान विष्णु की कृपा से मृत्यु के बाद मोक्ष की भी प्राप्ति बतलाई गई है।

जया एकादशी पर भगवान श्रीहरि की पूजा का विधान

ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि व्रत के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर अपने समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त होकर गंगा-स्नानादि करना चाहिए। गंगा-स्नान यदि सम्भव न हो तो घर पर ही स्वच्छ जल से स्नान करने के पश्चात् स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए। अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा-अर्चना के पश्चात् जया एकादशी के व्रत का संकल्प लेना चाहिए।

जया एकादशी के दिन व्रत रखकर भगवान श्रीविष्णुजी की पूजा-अर्चना के पश्चात् उनकी महिमा में श्रीविष्णु सहस्रनाम, श्रीपुरुषसूक्त तथा श्रीविष्णुजी से सम्बन्धित मन्त्र ‘ॐ श्रीविष्णवे नम:’ या ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ का जप अधिक से अधिक संख्या में करना चाहिए। सम्पूर्ण दिन व्रत उपवास रखकर जल आदि कुछ भी ग्रहण नहीं करना चाहिए।

विशेष परिस्थितियों में दूध या फलाहार ग्रहण किया जा सकता है। व्रत कर्ता को दिन में शयन नहीं करना चाहिए। व्रत का पारण दूसरे दिन स्नानादि के पश्चात् इष्ट देवी-देवता तथा भगवान श्री विष्णु जी अथवा भगवान श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना करने के पश्चात् किया जाता है। जया एकादशी का व्रत महिला व पुरुष दोनों के लिए समान रूप से फलदायी है। आज के दिन सम्पूर्ण दिन निराहार रहना चाहिए, चावल तथा अन्न ग्रहण करने का निषेध है।

विधि-विधानपूर्वक जया एकादशी के व्रत व भगवान श्रीविष्णुजी की विशेष कृपा से जीवन में सुख-समृद्धि, खुशहाली बनी रहती है। आज के दिन ब्राह्मण को यथा सामथ्र्य दक्षिणा के साथ दान करके लाभ उठाना चाहिए। अपने जीवन में मन-वचन कर्म से पूर्ण रूपेण शुचिता बरतते हुए यह व्रत करना विशेष फलदायी रहता है।

जया एकादशी पौराणिक व्रतकथा

इंद्रलोक की अप्सरा को श्राप के कारण पिशाच योनि में जन्म लेना पड़ा, उससे मुक्ति के लिए उसने जया एकादशी का व्रत किया। भगवान विष्णु की कृपा से वह पिशाच योनि से मुक्त हो गई और फिर से उसे इंद्रलोक में स्थान प्राप्त हो गया। भगवान श्री कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को जया एकादशी के पुण्य के बारे में बताया था।
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