वैष्णवजन रखेंगे व्रत, भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन से भक्त होंगे निहाल
-ज्योर्तिविद् विमल जैन
भारतीय संस्कृति के सनातन धर्म में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को अति लोकप्रिय एवं विशिष्ट पर्व माना गया है। भाद्रपद कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि के दिन यह पर्व मनाया जाता है।
धार्मिक व पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण का अवतार द्वापर युग के अन्तिम चरण में भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन मध्यरात्रि 12 बजे वृषभ लग्न में मथुरा में हुआ था। इस दिन बुधवार व रोहिणी नक्षत्र से बना जयन्ती योग था। शास्त्रों के मुताबिक भगवान श्रीकृष्ण के अवतार को पूर्ण अवतार माना गया है।
भगवान् श्रीकृष्ण की जन्मकुण्डली
प्रख्यात ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि अखिल ब्रह्माण्ड के महानायक षोडश कला से युक्त भगवान् श्रीकृष्णजी की महिमा अपरम्पार है। भगवान् श्रीकृष्णजी की जन्मकुण्डली अपने आप में विशेष है। भगवान श्रीकृष्ण के अवतरण के समय जन्मकुण्डली में चार प्रमुख ग्रह चन्द्रमा, मंगल, वृहस्पति व शनि उच्च राशि में। सूर्य, बुध व शुक्र स्वराशि में तथा राहु वृश्चिक और केतु ग्रह वृषभ राशि में विराजमान थे।
ऐसी धार्मिक मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण जी की महिमा में जन्माष्टमी पर व्रत उपवास रखकर श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाने पर जीवन में अनन्त पुण्यफल की प्राप्ति के साथ ही जीवन में सुख-समृद्धि, सफलता का मार्ग प्रशस्त होता है।
ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि ग्रह नक्षत्रों के योग से जयन्ती योग पर षोडश कलायुक्त जगत योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण धरती पर अवतरित हुए थे। इस बार जन्माष्टमी का पावन पर्व 15 अगस्त, शुक्रवार को स्मार्तजन (गृहस्थजन) एवं 16 अगस्त, शनिवार को वैष्णवजन व्रत, उपवास रखकर भगवान् श्रीकृष्णजी की विधि-विधानपूर्वक पूजा अर्चना करके उनका आशीर्वाद प्राप्त करेंगे।
भाद्रपद कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि 15 अगस्त, शुक्रवार को रात्रि 11 बजकर 51 मिनट पर लगेगी, जो कि 16 अगस्त, शनिवार को रात्रि 9 बजकर 35 मिनट तक रहेगी। तत्पश्चात् नवमी तिथि प्रारम्भ हो जाएगी, जो कि 17 अगस्त, रविवार को रात्रि 7 बजकर 25 मिनट तक रहेगी।
रोहिणी नक्षत्र 16 अगस्त, शनिवार को अर्द्धरात्रि के पश्चात् 4 बजकर 39 मिनट से 17 अगस्त, रविवार को अर्द्धरात्रि के पश्चात् 3 बजकर 18 मिनट तक रहेगा। भगवान श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना का विशिष्ट काल 15 अगस्त, शुक्रवार को अष्टमी तिथि के दिन रहेगा, जो कि भगवान् श्रीकृष्ण की आराधना के लिए विशेष शुभफलदायी रहेगा।
भगवान श्रीकृष्ण जी ऐसे करें पूजा
ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि व्रतकर्ता को प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नानादि के पश्चात् स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए। तत्पश्चात् नियमित करने वाली आराध्य देवी-देवता की पूजा-अर्चना करने के उपरान्त श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के व्रत एवं पूजन का संकल्प पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके अपने दाहिने हाथ में जल, पुष्प, फल, गन्ध व कुश लेकर लेना चाहिए। श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव की पावन बेला पर रात्रि में भगवान् श्रीकृष्ण का नयनाभिराम अलौकिक, मनमोहक शृंगार करना चाहिए।
भगवान् श्रीकृष्ण के बालस्वरूप को मनमोहक झूले में झुलाने का विधान है। इस दिन पावन बेला में पूजा के अन्तर्गत विशेष नैवेद्य के तौर पर मक्खन, दही, धनिये से बनी मेवायुक्त पंजीरी, सूखे मेवे, मिष्ठान्न व ऋतुफल आदि अर्पित किए जाते हैं।
सम्पूर्ण दिन उपवास रखकर रात्रि 12 बजे भगवान् श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के पश्चात् पूजा-आरती के पश्चात् प्रसाद ग्रहण करने का विधान है। इस दिन भगवान् श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव की श्रृंगारिक अलौकिक झांकियाँ सजाकर रात्रि जागरण करने की भी परम्परा है। साथ ही भगवान श्रीकृष्ण चालीसा, श्रीकृष्ण स्तोत्र तथा भगवान श्रीकृष्ण से सम्बन्धित मन्त्र का जप करना चाहिए।
सम्पूर्ण दिन पूर्ण शुचिता के साथ व्रत, उपवास रखने पर जीवन के समस्त पापों का शमन होता है, सुख-समृद्धि, खुशहाली के साथ ही अनन्त पुण्यफल की प्राप्ति का सुयोग बनता है।
(विमल जैन, हस्तरेखा विशेषज्ञ, रत्न-परामर्शदाता, फलित अंक ज्योतिषी एवं वास्तुविद् एस. 2/1-76 ए, द्वितीय तल, वरदान भवन, टैगोर टाउन एक्सटेंशन, भोजूबीर, वाराणसी-221002 मो.:09335414722)