जयपुर, 6 नवंबर। सवाई मानसिंह (एसएमएस) अस्पताल के ईएनटी विभाग में गुरुवार को रेट्रोऑरिक्यूलर एंडोस्कोपिक सर्जरी तकनीक से थाइरोइड ऑपरेशन किया गया। यह संभवतः राजस्थान का पहला सफल ऑपरेशन है जो इस उन्नत तकनीक से हुआ है।
ईएनटी विभागाध्यक्ष डॉ. पवन सिंघल ने बताया कि भरतपुर जिले के भुसावर निवासी काजल (20 वर्ष) की गर्दन में बिना चीरा लगाए कान के पीछे से दूरबीन तकनीक द्वारा थाइरोइड ग्रंथि की गांठें निकाली गईं।
उन्होंने कहा कि इस विधि में गर्दन पर कोई कट नहीं लगता। कान के पीछे बालों से छिपे हिस्से में एक छोटे छिद्र से एंडोस्कोपिक उपकरण डाले जाते हैं, जिनकी मदद से सर्जन थाइरोइड ग्रंथि तक पहुँचकर गांठों को निकालते हैं।

डॉ. सिंघल के अनुसार यह तकनीक पारंपरिक तरीकों की तुलना में अधिक सुरक्षित है क्योंकि इसमें संक्रमण या जटिलताओं की संभावना बेहद कम होती है। ऑपरेशन के बाद मरीज पूरी तरह स्वस्थ है। उसे न दर्द है, न ही आवाज पर कोई असर पड़ा है।
उन्होंने कहा कि रेट्रोऑरिक्यूलर एंडोस्कोपिक तकनीक पारंपरिक ओपन थाइरोइड सर्जरी की तुलना में अधिक सौंदर्यपूर्ण और रोगी-अनुकूल है।

इस सर्जरी में डॉ. परिधि सिसोदिया, डॉ. इशिता बंसल और डॉ. तान्या (ईएनटी विभाग) ने डॉ. सिंघल के साथ सहयोग किया।
निश्चेतन विभाग की टीम में डॉ. सुनीता मीना और डॉ. महिपाल, जबकि नर्सिंग टीम में नेहा, दिलीप और तारा सिंह शामिल थे।
क्या है रेट्रोऑरिक्यूलर एंडोस्कोपिक सर्जरी
रेट्रोऑरिक्यूलर एंडोस्कोपिक सर्जरी (Retroauricular Endoscopic Surgery) एक कम इनवेसिव (Minimally Invasive) तकनीक है जिसमें ऑपरेशन कान के पीछे से किया जाता है — यानी चेहरे या गर्दन पर कोई चीरा या निशान नहीं पड़ता।
यह तकनीक विशेष रूप से थाइरोइड, पैराथाइरोइड और सैलिवरी ग्लैंड की सर्जरी में उपयोग की जाती है।
इस तकनीक के प्रमुख लाभ:
- कोई दिखाई देने वाला निशान नहीं — गर्दन पर दाग या चीरा नहीं रहता।
- कम दर्द और तेज रिकवरी — मरीज जल्दी सामान्य जीवन में लौट आता है।
- कम रक्तस्राव और संक्रमण का खतरा — सर्जरी क्षेत्र छोटा होने से जोखिम घटता है।
- सर्जन को बेहतर दृश्य नियंत्रण — एंडोस्कोपिक कैमरे से अधिक स्पष्टता मिलती है।
- सौंदर्य की दृष्टि से बेहतर विकल्प — खासकर युवा और महिला मरीजों के लिए उपयुक्त।
