कविता : मन के रावण
मेरे मन में बैठे है कई रावण किसी को चाह है गरीबों का हक़ मारने की, किसी को ईर्ष्या है पड़ोसी की प्रगति से किसी को औरों की जमीन पे करना है कब्ज़ा किसी को ठग के ठाकुर बनना है किसी को बेच के लोगों के अंग खुद के अंगरक्षक रखना है किसी को बेच … Read more