जयपुर, 15 अक्टूबर।
इस दीपावली राजस्थान में मिट्टी के दीयों की लौ के साथ स्वदेशी भावना भी पहले से ज्यादा उजली दिख रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘लोकल फॉर वोकल’ और ‘स्वदेशी अपनाओ’ अभियान ने न सिर्फ बाजार की तस्वीर बदली है, बल्कि कुम्हार समुदाय की किस्मत भी रोशन कर दी है।
पहले जहां बाजारों में चाइनीज लाइट्स और प्लास्टिक के दीयों की चमक छाई रहती थी, वहीं अब मिट्टी की खुशबू से सजे स्वदेशी दीपकों की मांग बढ़ गई है। जोधपुर से लेकर बीकानेर और सूरतगढ़ तक, हर छोटे-बड़े बाजार में स्थानीय कारीगरों के हस्तनिर्मित दीयों और सजावटी वस्तुओं की रौनक देखने लायक है।
🌾 कुम्हारों की तकदीर बदली, आमदनी हुई दोगुनी
जोधपुर के कुम्हारों का कहना है कि मोदी सरकार की इस पहल ने उनके जीवन में नई रोशनी भर दी है।
नागौर जिले की बिमला बाई बताती हैं –
“पहले विदेशी रंगीन दीयों की मांग ज्यादा थी, लेकिन अब लोग स्वदेशी मिट्टी के दीये ही पसंद कर रहे हैं। अब हम रोज़ाना करीब 700 दीये बना रहे हैं – और हर दीया अपने देश की पहचान बन गया है।”
वहीं, बीकानेर के लूणकरनसर निवासी रामूराम कुम्हार कहते हैं –
“यह सिर्फ कारोबार नहीं, गर्व की बात है कि लोग अब ‘मेक इन इंडिया’ को अपनाकर हमें सम्मान दे रहे हैं। हमारी आमदनी पहले की तुलना में कई गुना बढ़ी है।”
🏺 ग्रामीण भारत में जागा आत्मनिर्भरता का उत्सव
‘स्वदेशी अपनाओ’ अभियान अब केवल एक सरकारी नारा नहीं, बल्कि ग्रामीण भारत के आर्थिक पुनर्जागरण का प्रतीक बन गया है।
सूरतगढ़ के किसान नरेंद्र कंबोज का कहना है –
“प्रधानमंत्री के आह्वान के बाद मिट्टी से बने दीयों, कुल्हड़ों और अन्य वस्तुओं की बिक्री में भारी इजाफा हुआ है। पूरा कुम्हार समाज अब आत्मनिर्भरता की राह पर आगे बढ़ रहा है।”
🌟 ‘लोकल फॉर वोकल’ बना सांस्कृतिक पुनर्जागरण का प्रतीक
त्योहारों पर स्थानीय वस्तुओं को प्राथमिकता देने से न केवल ग्रामीण कारीगरों की आर्थिक स्थिति सुधरी है, बल्कि भारतीय परंपरा और संस्कृति को भी नई पहचान मिली है।
अब युवा भी स्वदेशी वस्तुओं को खरीदना गर्व का विषय मान रहे हैं।
🪔 संक्षेप में –
- स्वदेशी दीयों की बिक्री में तेजी, चाइनीज उत्पादों की मांग घटी।
- राजस्थान के कुम्हारों की आमदनी में 3 से 5 गुना तक वृद्धि।
- हर घर में जलेंगे देशी दीये, बनेगी स्थानीय रोजगार की नई रोशनी।
