नई दिल्ली, 15 अक्टूबर।
हर साल 15 अक्टूबर को पूरी दुनिया में विश्व ग्रामीण महिला दिवस (International Day of Rural Women) मनाया जाता है। यह दिवस उन महिलाओं को सम्मान देने का प्रतीक है जो ग्रामीण भारत की आत्मा हैं – खेतों में मेहनत करती हैं, पशुधन संभालती हैं, जल और वनों का संरक्षण करती हैं, और समाज की असली शिल्पकार हैं।
🌾 अन्नदाता से समाज निर्माता तक – ग्रामीण महिला की भूमिका
ग्रामीण महिलाएं न केवल अपने परिवार की रीढ़ हैं बल्कि पूरे समाज की प्रगति की आधारशिला भी हैं। वे खेती, पशुपालन, जल-संरक्षण, हस्तशिल्प, शिक्षा और पारिवारिक पोषण जैसे हर क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। कठिन परिस्थितियों में भी उनकी प्रतिबद्धता और मेहनत समाज को आगे बढ़ाने में योगदान देती है।
📈 समान अवसर से ही होगा सशक्तिकरण
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, सतत विकास (Sustainable Development) और खाद्य सुरक्षा (Food Security) तभी संभव है जब ग्रामीण महिलाओं को शिक्षा, स्वास्थ्य, भूमि अधिकार और वित्तीय संसाधनों तक समान पहुंच मिले।
कई ग्रामीण महिलाएं अब स्वयं सहायता समूहों, लघु उद्योगों, और महिला उद्यमिता योजनाओं के माध्यम से आत्मनिर्भर बन रही हैं।
🌍 दिवस की शुरुआत और उद्देश्य
इस दिवस को मनाने की शुरुआत संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 18 दिसंबर 2007 को की थी, और पहली बार वर्ष 2008 में इसे मनाया गया।
इसका उद्देश्य है –
“ग्रामीण महिलाओं के योगदान को पहचानना और उन्हें समान अधिकार, संसाधनों तक पहुंच और निर्णय लेने की शक्ति प्रदान करना।”
💪 ‘जब महिला सशक्त होती है, पूरा समाज आगे बढ़ता है’
आज भारत की ग्रामीण महिलाएं केवल खेतों तक सीमित नहीं रहीं। वे ग्रामीण अर्थव्यवस्था की असली प्रेरक शक्ति हैं।
वे शिक्षा प्राप्त कर रही हैं, डिजिटल सशक्तिकरण की दिशा में बढ़ रही हैं और अपने परिवार के साथ-साथ देश के विकास में नई भूमिका निभा रही हैं।
✨ संदेश
विश्व ग्रामीण महिला दिवस हमें याद दिलाता है कि
“जब ग्रामीण महिलाएं मजबूत होती हैं – तब समाज, अर्थव्यवस्था और राष्ट्र, तीनों समृद्ध होते हैं।”
उनका सशक्तीकरण केवल महिलाओं का नहीं, बल्कि पूरे मानव समाज का उत्थान है।
