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जावेद अख्तर ने कहा: “कविता भाषा का संगीत है, और संगीत ध्वनि का काव्य”

On: November 16, 2025 8:52 PM
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Javed Akhtar, Soundscapes of India
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आईजीएनसीए में ‘साउंडस्केप्स ऑफ इंडिया’ सीज़न–2

नई दिल्ली, 16 नवंबर। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (IGNCA) में भारत के पहले संगीत-आधारित ग्लोबल शोकेस और सम्मेलन ‘साउंडस्केप्स ऑफ इंडिया’ के दूसरे संस्करण का शानदार उद्घाटन हुआ।
यह तीन दिवसीय महोत्सव 10 से 12 नवंबर के बीच आयोजित किया गया, जिसका आयोजन इंडियन परफॉर्मिंग राइट सोसाइटी लिमिटेड (IPRS) ने केंद्र सरकार के संस्कृति मंत्रालय और म्यूज़िकनेक्ट इंडिया के सहयोग से किया।

उद्घाटन सत्र में IPRS के अध्यक्ष, सुप्रसिद्ध कवि-गीतकार और पद्म भूषण जावेद अख्तर ने संवाददाताओं से बातचीत की और संगीत, रचनात्मकता और कविता के अनेक पहलुओं पर अपने विचार रखे। उनके साथ IPRS के सीईओ राकेश निगम तथा चर्चित पटकथा लेखक मयूर पुरी भी मौजूद रहे।
कार्यक्रम के पहले दिन जावेद अख्तर ने ‘गीत लेखन की कला’ विषय पर एक विशेष सत्र भी संचालित किया।

“कविता और संगीत, दोनों ही लय और अनुनाद के आधार पर जन्म लेते हैं” : अख्तर

अपने संबोधन में जावेद अख्तर ने कविता और संगीत के गहरे संबंधों को विस्तार से समझाया।
उन्होंने कहा—
“काव्य भाषा का संगीत है और संगीत ध्वनि का काव्य है।”

उन्होंने बताया कि काव्य और संगीत दोनों ही छंद, लय और संतुलन पर टिके होते हैं, और जब ये दोनों मिलते हैं तो एक ऐसी रचना का जन्म होता है जो सीमाओं से परे जाकर सीधे दिल तक पहुंचती है।
पाइथागोरस के अनुपात और संतुलन के संदर्भ का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि रचनात्मकता का मूल आधार ताल, लय और ध्वनि की अंतर्ध्वनि है।

आधुनिक काव्य प्रवृत्तियों पर तीखी राय

जावेद अख्तर ने समकालीन काव्य-प्रवृत्तियों पर स्पष्ट और निर्भीक राय रखते हुए कहा कि गद्य को कविता की तरह प्रस्तुत करना “भ्रम पैदा करने वाला” और “काव्य से विमुख” करने वाला तरीका है।
उन्होंने कहा कि कविता का सार उसके संगीत—यानी उसकी लय, छंद और सुर—में निहित है।
“जब लय और माधुर्य छिन जाते हैं, तो कविता केवल शब्दों का समूह भर रह जाती है,” उन्होंने कहा।

उन्होंने यह भी कहा कि कविता सीखना एक सतत साधना है और हर कवि को कविता पढ़ते रहना चाहिए।
उनके अनुसार, “शब्दों का अपना जीवन होता है, जो अवचेतन मन में अर्थ और संवेदना रचते हैं।”

फिल्मी गीतों की गिरती गुणवत्ता पर टिप्पणी

फिल्म संगीत की स्थिति पर पूछे गए प्रश्न पर उन्होंने कहा कि समाज की रचनात्मकता उसी समाज की चेतना और संवेदनशीलता का प्रतिबिंब होती है।
उन्होंने कहा कि हमारे शिक्षा तंत्र में समझ और भाषा की गहराई की जगह सिर्फ रोजगार पर ध्यान बढ़ गया है, जिससे साहित्यिक संवेदना प्रभावित हुई है।
उन्होंने सवाल उठाया—
“जब सीखने का मकसद केवल कमाई रह जाए, तो साहित्य में गंभीरता कैसे आएगी?”

एआई पर बेबाक टिप्पणी: “एआई एक औज़ार है, रचनाकार नहीं”

कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर जावेद अख्तर ने कहा कि AI एक कुशल उपकरण हो सकता है, लेकिन वह रचनात्मकता की गहराई को नहीं छू सकता।
उन्होंने कहा, “कला का जन्म चेतन और अवचेतन के बीच की उस निस्तब्ध जगह में होता है, जहां कोई मशीन नहीं पहुँच सकती।”
उनके अनुसार, भावनाएं, कल्पना, उत्कंठा और मन की बेचैनी—इन्हीं तत्वों से सच्ची कला बनती है।

“भारत संगीत का देश है” — विविध परंपराओं की सराहना

अख्तर ने भारत को ‘संगीत का देश’ बताते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश और पूर्वोत्तर जैसे क्षेत्रों में संगीत की अपार संभावनाएं छिपी हैं।
उन्होंने स्पष्ट किया कि साउंडस्केप्स ऑफ इंडिया कोई प्रतिभा खोज कार्यक्रम नहीं, बल्कि प्रतिभा का उत्सव है—जहां कला और बाज़ार एक मंच पर आते हैं।

तीन दिनों तक 100 कलाकार, 24 बैंड और वैश्विक उपस्थिति

तीन दिन तक चले इस उत्सव में 100 से अधिक कलाकारों और 24 बैंडों ने प्रस्तुति दी, जिनमें दो अंतरराष्ट्रीय बैंड भी शामिल थे।
लोक-फ्यूज़न, शास्त्रीय-फ्यूज़न, हिप-हॉप, जैज़, पॉप, मेटल और रॉक—संगीत की विविध शैलियों ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया।
हिंदी, अंग्रेज़ी, कोंकणी, तमिल, लद्दाखी और कई भारतीय भाषाओं में प्रस्तुतियों ने इस कार्यक्रम को और भी समृद्ध बनाया।

15 देशों—जैसे कनाडा, मिस्र, जापान, स्पेन, पुर्तगाल, नीदरलैंड, दक्षिण कोरिया आदि—से आए महोत्सव निर्देशक, बुकिंग एजेंट और प्रमोटरों ने भारतीय कलाकारों को अंतरराष्ट्रीय मंच प्रदान करने में उत्साह दिखाया।

पहले संस्करण की सफलता ने बढ़ाई उम्मीदें

पिछले सीज़न की तरह इस बार भी कई भारतीय कलाकारों को विश्व मंच से जुड़ने का अवसर मिला।
बंगाली लोक-त्रयी ‘बाउल मोन’ ने इसी मंच से अंतरराष्ट्रीय पहचान पाई और दक्षिण कोरिया में बसकिंग वर्ल्ड कप जीतकर भारत का गौरव बढ़ाया।
इसी प्रकार दिल्ली के तालवाद्य समूह ‘ताल फ्री’ ने मलेशिया के प्रतिष्ठित रेनफ़ॉरेस्ट वर्ल्ड म्यूज़िक फेस्टिवल में प्रस्तुति दी।

भारत की सांस्कृतिक शक्ति को वैश्विक मंच पर स्थापित करने की दिशा में कदम

साउंडस्केप्स ऑफ इंडिया केवल संगीत का उत्सव नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक विविधता और रचनात्मक ऊर्जा का जीवंत प्रदर्शन है।
यह भारतीय कलाकारों को वैश्विक संगीत समुदाय से जोड़ते हुए भारत को केवल उपभोक्ता बाज़ार नहीं, बल्कि रचनात्मक शक्ति के रूप में स्थापित करने का प्रयास है।

जैसे-जैसे भारतीय संगीत विश्व मंच पर अपना प्रभाव बढ़ा रहा है, यह उत्सव साबित करता है कि भारत के सुर अब सीमाओं को पार कर दुनिया भर में गूंज रहे हैं।

Hello Rajasthan

हैल्लो राजस्थान टीम पत्रकारों का एक समूह है। जिसमें विभिन्न मुद्दों पर लिखने वाले पत्रकार काम कर रहें है।

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